एक चुनावी सभा में मुलायम सिंह यादव ने नरेंद्र मोदी पर कटाक्ष करते हुए कहा, "मोदी में दम नहीं है कि वो उत्तर प्रदेश को गुजरात बना दें."
दूसरे दिन एक दूसरी चुनाव सभा में नरेंद्र मोदी ने इसका उसी 'टोन' में जवाब दिया, "नेताजी कह रहे हैं कि मोदी में बूता नहीं है कि वो उत्तर प्रदेश को दूसरा गुजरात बना दें. क्या आपको पता है कि दूसरा गुजरात बनाने के लिए क्या चीज़ सबसे अधिक ज़रूरी है? इसके लिए चाहिए छप्पन इंच की छाती."
इस एक जुमले ने उस चुनाव में मोदी को एक 'माचो मैन' के रूप में स्थापित कर दिया. इसके ज़रिए उन्होंने हिंदू पौरुष से प्रभावित होने वाले मतदाताओं को अपनी ओर आकृष्ट भी किया.
ये अलग बात है कि जब उनके जीवनीकार निलंजन मुखोपाध्याय ने अहमदाबाद में उनके दर्ज़ी बिपिन चौहान से जिनकी 'जेड ब्लू' नाम की दुकान है, उनकी सीने की असली नाप जाननी चाही, तो वो चुप लगा गए और इतना ही बताया कि वो 56 इंच तो नहीं ही है.
बाद में जब भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय के अधिकारियों को नरेंद्र मोदी की अचकन सिलवाने की ज़िम्मेदारी दी गई तो उनके दर्ज़ी को नरेंद्र मोदी के सीने की नाप 50 इंच बताई गई.
अपने पढ़ाई के दिनों में मोदी एक औसत विद्यार्थी थे.
निलंजन मुखोपाध्याय ने बीएन हाई स्कूल में उनके उन दिनों के अध्यापक प्रह्लाद भाई पटेल से बात कर अपनी किताब 'नरेंद्र मोदी- द मैन, द टाइम्स' में लिखा है, "नरेंद्र उन दिनों बहस बहुत करते थे. एक बार मैंने उन्हें अपना 'होम वर्क' क्लास के 'मॉनीटर' को दिखाने के लिए कहा."
"मोदी ने ये कहते हुए साफ़ इनकार कर दिया कि मैं अपना काम या तो अध्यापक को दिखाउंगा, या किसी को भी नहीं."
मोदी के बड़े से बड़े विरोधी भी मानते हैं कि उनमें आत्मविश्वास की कमी नहीं.
मोदी के एक और जीवनीकार एंडी मरीनो अपनी किताब 'नरेंद्र मोदी अ पोलिटिकल बायोग्राफ़ी' में लिखते हैं, "मोदी के बचपन के दिनों में शर्मिष्ठा झील के पास एक मंदिर हुआ करता था. कई पवित्र मौक़ों पर उसके ऊपर लगे झंडे को बदला जाता था. एक बार भारी बारिश के बाद उस झंडे को बदलना ज़रूरी हो गया."
"नरेंद्र मोदी ने तय किया कि वो झील के पार तैर कर जाएंगे और उस झंडे को बदलेंगे. झील में उस समय बहुत सारे मगरमच्छ रह रहे थे. किनारे खड़े लोग मगरमच्छों को डराने के लिए ढोल बजाते रहे और नरेंद्र मोदी अकेले तैर कर झील के पार जा कर मंदिर का झंडा बदल आए. जब वो वापस लौटे तो लोगों ने उन्हें कंधों पर उठा लिया."
हालांकि एक तबका ऐसा भी है जो इस घटना को सच नहीं मानता और दावा करता है कि ऐसा कभी नहीं हुआ था.
नरेंद्र मोदी शुरू से ही घर के काम में हाथ बँटाते थे. स्कूल बंद होते ही दौड़ कर वडनगर स्टेशन पर अपने पिता की चाय की दुकान पर पहुंच जाते थे.
नरेंद्र मोदी ने लोगों को ये बात हमेशा गर्व से बताई.
एक बार असम के चाय मज़दूरों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था, "लोगों को आपकी असम की चाय पिला-पिला कर ही मैं इस जगह पर पहुंचा हूँ."
मोदी की जीवनी लिखने वालों में से कई लोग ऐसे भी थे जो आरएसएस की विचारधारा से सहमति रखते थे. इन लोगों ने नरेंद्र मोदी के उन दिनों के बारे में विस्तार से लिखा है, जब वे वडनगर और अहमदाबाद में 'चाय बेचते' थे.
कई मीडिया रिपोर्ट्स में ये भी दावा किया गया कि वडनगर रेलवे स्टेशन पर चाय बेचने के बाद नरेंद्र मोदी अपने मामा के साथ काम करते थे, तो अहमदाबाद में गीता मंदिर बस स्टॉप के पास अपनी कैंटीन चलाते थे.
दूसरे दिन एक दूसरी चुनाव सभा में नरेंद्र मोदी ने इसका उसी 'टोन' में जवाब दिया, "नेताजी कह रहे हैं कि मोदी में बूता नहीं है कि वो उत्तर प्रदेश को दूसरा गुजरात बना दें. क्या आपको पता है कि दूसरा गुजरात बनाने के लिए क्या चीज़ सबसे अधिक ज़रूरी है? इसके लिए चाहिए छप्पन इंच की छाती."
इस एक जुमले ने उस चुनाव में मोदी को एक 'माचो मैन' के रूप में स्थापित कर दिया. इसके ज़रिए उन्होंने हिंदू पौरुष से प्रभावित होने वाले मतदाताओं को अपनी ओर आकृष्ट भी किया.
ये अलग बात है कि जब उनके जीवनीकार निलंजन मुखोपाध्याय ने अहमदाबाद में उनके दर्ज़ी बिपिन चौहान से जिनकी 'जेड ब्लू' नाम की दुकान है, उनकी सीने की असली नाप जाननी चाही, तो वो चुप लगा गए और इतना ही बताया कि वो 56 इंच तो नहीं ही है.
बाद में जब भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय के अधिकारियों को नरेंद्र मोदी की अचकन सिलवाने की ज़िम्मेदारी दी गई तो उनके दर्ज़ी को नरेंद्र मोदी के सीने की नाप 50 इंच बताई गई.
अपने पढ़ाई के दिनों में मोदी एक औसत विद्यार्थी थे.
निलंजन मुखोपाध्याय ने बीएन हाई स्कूल में उनके उन दिनों के अध्यापक प्रह्लाद भाई पटेल से बात कर अपनी किताब 'नरेंद्र मोदी- द मैन, द टाइम्स' में लिखा है, "नरेंद्र उन दिनों बहस बहुत करते थे. एक बार मैंने उन्हें अपना 'होम वर्क' क्लास के 'मॉनीटर' को दिखाने के लिए कहा."
"मोदी ने ये कहते हुए साफ़ इनकार कर दिया कि मैं अपना काम या तो अध्यापक को दिखाउंगा, या किसी को भी नहीं."
मोदी के बड़े से बड़े विरोधी भी मानते हैं कि उनमें आत्मविश्वास की कमी नहीं.
मोदी के एक और जीवनीकार एंडी मरीनो अपनी किताब 'नरेंद्र मोदी अ पोलिटिकल बायोग्राफ़ी' में लिखते हैं, "मोदी के बचपन के दिनों में शर्मिष्ठा झील के पास एक मंदिर हुआ करता था. कई पवित्र मौक़ों पर उसके ऊपर लगे झंडे को बदला जाता था. एक बार भारी बारिश के बाद उस झंडे को बदलना ज़रूरी हो गया."
"नरेंद्र मोदी ने तय किया कि वो झील के पार तैर कर जाएंगे और उस झंडे को बदलेंगे. झील में उस समय बहुत सारे मगरमच्छ रह रहे थे. किनारे खड़े लोग मगरमच्छों को डराने के लिए ढोल बजाते रहे और नरेंद्र मोदी अकेले तैर कर झील के पार जा कर मंदिर का झंडा बदल आए. जब वो वापस लौटे तो लोगों ने उन्हें कंधों पर उठा लिया."
हालांकि एक तबका ऐसा भी है जो इस घटना को सच नहीं मानता और दावा करता है कि ऐसा कभी नहीं हुआ था.
नरेंद्र मोदी शुरू से ही घर के काम में हाथ बँटाते थे. स्कूल बंद होते ही दौड़ कर वडनगर स्टेशन पर अपने पिता की चाय की दुकान पर पहुंच जाते थे.
नरेंद्र मोदी ने लोगों को ये बात हमेशा गर्व से बताई.
एक बार असम के चाय मज़दूरों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था, "लोगों को आपकी असम की चाय पिला-पिला कर ही मैं इस जगह पर पहुंचा हूँ."
मोदी की जीवनी लिखने वालों में से कई लोग ऐसे भी थे जो आरएसएस की विचारधारा से सहमति रखते थे. इन लोगों ने नरेंद्र मोदी के उन दिनों के बारे में विस्तार से लिखा है, जब वे वडनगर और अहमदाबाद में 'चाय बेचते' थे.
कई मीडिया रिपोर्ट्स में ये भी दावा किया गया कि वडनगर रेलवे स्टेशन पर चाय बेचने के बाद नरेंद्र मोदी अपने मामा के साथ काम करते थे, तो अहमदाबाद में गीता मंदिर बस स्टॉप के पास अपनी कैंटीन चलाते थे.