Friday, September 7, 2018

जेफ्री कहते हैं कि सीरिया में सात साल से जारी गृहयुद्ध को

खत्म करने के लिए बड़ी "राजनयिक पहल" करनी होगी.
उन्होंने कहा कि जबतक सीरिया में आईएसआईएस का खात्मा नहीं हो जाता और सीरियाई सरकार का समर्थन करने वाले ईरान के लड़ाके अपने देश वापस नहीं लौट जाते, तब तक डोनल्ड ट्रंप सीरिया की स्थिति पर नज़र बनाए रखेंगे.फ्री ने कहा कि सीरिया की "कमान ज़्यादा दिन तक राष्ट्रपति असद के हाथ में नहीं रहेगी". हालांकि जेफ्री ने साफ़ किया कि असद को सत्ता से बेदखल करने का काम अमरीका का नहीं है.
उन्होंने कहा कि अमरीका, सीरिया में राजनीतिक बदलाव की प्रक्रिया में रूस के साथ मिलकर काम करेगा.
जेफ्री ने कहा, "सीरिया की सरकार इस वक्त लाशों के ढेर पर बैठी है और उसके पास सिर्फ़ आधे सीरिया का कब्ज़ा है."
सीरियाई सरकार ने सहयोगी रूस के हवाई हमलों और ईरान समर्थित हज़ारों लड़ाकों की मदद से देश के बाकी हिस्से में विद्रोहियों को उखाड़ फेंका है. इसलिए इदलिब सीरिया युद्ध का आखिरी पड़ाव है.
माना जाता है कि इदलिब में 30 हज़ार से ज़्यादा विद्रोही और जिहादी लड़ाके मौजूद हैं.
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि इदलिब में 29 लाख लोग रहते हैं जिनमें से क़रीब 10 लाख बच्चे हैं. इस शहर के अधिकतर बाशिंदे विद्रोहियों के कब्ज़े वाले अन्य इलाकों से भागकर आए हैं.
संयुक्त राष्ट्र के अधिकारियों के मुताबिक इदलिब पर हमले से आठ लाख लोग विस्थापित हो सकते हैं. ऐसे में एक बड़ा मानवीय संकट खड़ा होने का खतरा है. शहूर अमरीकी पत्रकार बॉब वुडवर्ड की नई किताब में दावा किया गया है कि डोनल्ड ट्रंप ने एक बार अमरीकी रक्षा मंत्रालय को सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल असद की हत्या के आदेश दिए थे.
वुडवर्ड की इस किताब किताब का नाम 
किताब में कुछ वरिष्ठ अधिकारियों के हवाले से कहा गया है कि उन्होंने कई संवेदशील काग़ज़ात ट्रंप से सिर्फ़ इसलिए छिपा कर रखे ताकि कहीं वो उन पर दस्तख़त न कर दें.
किताब में ये भी लिखा है कि वरिष्ठ अधिकारियों ने ट्रंप को 'झूठा' और बेवकूफ़ कहा था. डवर्ड एक बेहद प्रतिष्ठित पत्रकार हैं. उन्होंने 1970 के दशक में वॉटरगेट स्कैम में राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन की भूमिका सामने लाने में बड़ी भूमिका निभाई थी.
सबसे पहले इस किताब के कुछ अंश वॉशिंगटन में प्रकाशित हुए. इसके अगले दिन न्यूयॉर्क टाइम्स में इस विषय पर व्हाइट हाउस के एक अज्ञात वरिष्ठ अधिकारी के हवाले से एक लेख छपा. लेख में अधिकारी ने कहा है कि प्रशासन की समस्याओं की जड़ राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप की अनैतिकता है.
किताब के मुताबिक़, अप्रैल 2017 में सीरिया में हुए रासायनिक हमले के बाद राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने पेंटागन को सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल असद की हत्या के इंतज़ाम करने के निर्देश दिए थे.
किताब में दावा किया गया है कि जेम्स मैटिस पहले ट्रंप की गुज़ारिश मान गए थे लेकिन बातचीत के बाद उन्होंने अपने एक सहयोगी से कहा कि वो 'इनमें से कुछ' भी नहीं करेंगे.
राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने पत्रकारों से बातचीत में और अपने ट्वीट्स में किताब के दावों को पूरी तरह ख़ारिज किया है. उन्होंने बुधवार को मीडिया से कहा, "ऐसा कभी नहीं सोचा गया और नहीं ऐसा कभी सोचा जाएगा."
उन्होंने वुडवर्ड की पूरी किताब को ही 'मनगढ़ंत' बताया है. रक्षामंत्री जेम्स मैटिस ने भी किताब को किसी की 'बढ़िया कल्पनाओं से प्रेरित' बताया है.
है, जिसमें ट्रंप प्रशासन की कड़ी समीक्षा की गई है.
किताब में रक्षामंत्री जैम्स मैटिस के हवाले से कहा गया कि 2017 में सीरिया में हुए रासायनिक हमले के बाद ट्रंप ने असद को जान से मारने की मांग की थी.
हालांकि, ट्रंप ने इस सारे दावों को झूठा बताया है और कहा है कि ये सारे बातें लोगों को बरगलाने के लिए लिखी गई हैं.
ट्रंप ने कहा है कि उन्होंने इस बारे में रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों से 'कभी चर्चा ही नहीं की.' जेम्स मैटिस ने भी किताब के दावों को ख़ारिज किया है.
जापान ने घोषणा की है कि फ़ुकुशिमा परमाणु ऊर्जा संयंत्र में विकिरण की चपेट में आने से किसी पहले कर्मचारी की मौत हुई है.
50 वर्षीय शख़्स की मौत फेफड़ों के कैंसर से हुई है और 2016 में उनके कैंसर का पता चला था.
जापान सरकार ने पहले स्वीकार किया था कि विकिरण से चार कर्मचारी बीमार हुए थे लेकिन पहली बार किसी मौत की पुष्टि की गई है.
मार्च 2011 में 9.0 तीव्रता के भूकंप और सुनामी के बाद फ़ुकुशिमा परमाणु संयंत्र को नुकसान पहुंचा था.
जापान के उत्तर-पूर्वी तट पर संयंत्र का कूलिंग सिस्टम नष्ट हो गया था और रेडियोएक्टिव पदार्थ लीक हुए थे.
जिस कर्मचारी की मृत्यु हुई है वह 1980 से परमाणु ऊर्जा स्टेशन में काम कर रहे थे और जब यह हादसा हुआ तब वह फ़ुकुशिमा नंबर एक प्लांट के विकिरण मापने के इंचार्ज थे.
जापान के स्वास्थ्य, श्रम और कल्याण मंत्रालय ने कहा है कि संयंत्र में नुकसान के बाद उन्होंने वहां दो बार काम किया था और उन्होंने मास्क एवं सुरक्षात्मक सूट भी पहना था.
रेडियोलॉजिस्ट् और अन्य विशेषज्ञों के पैनल के विचार जानने के बाद मंत्रालय ने पीड़ित के परिवार को मुआवज़ा देने की बात कही है.
1986 में चेरनोबिल में परमाणु हादसे के बाद फ़ुकुशिमा की घटना दुनिया की सबसे बड़ी परमाणु हादसे की घटना थी.
भूकंप और सुनामी के कारण तकरीबन 18,500 लोगों की मौत हुई या वह ग़ायब हो गए और 1,60,000 लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा.
परमाणु संयंत्र हादसे में सीधे तौर पर किसी की मौत नहीं हुई थी लेकिन इसका परिचालन करने वाली टोक्यो इलेक्ट्रिक पावर कंपनी कई मुआवज़े के दावों का सामना कर रही है.

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